शेयर बाजार का माहौल निवेशकों को पूरी तरह भ्रमित कर रहा है।
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शेयर बाजार में एकतरफा और भारी गिरावट देखी जा रही है, जिसकी वजह से निवेशक भ्रमित हैं और अपने कदमों को लेकर अनिश्चित हैं। इसका कारण भारतीय जीडीपी और मुद्रास्फीति है। निवेशक बाजार की भावना को समझने में संघर्ष कर रहे हैं, जिससे निवेश के बारे में भरोसेमंद निर्णय लेना मुश्किल हो रहा है।
1. शेयर बाजार: एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) का बहिर्गमन
विदेशी निवेशकों की बिकवाली बाजार के रुझान को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब एफआईआई बड़ी मात्रा में अपनी होल्डिंग्स बेचते हैं, तो निफ्टी 50 पर काफी दबाव पड़ता है।
मजबूत होता अमेरिकी डॉलर: डॉलर मजबूत हुआ है, जिससे भारतीय रुपया कमजोर हुआ है, जिससे कॉर्पोरेट आय को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं, खासकर विदेशी कर्ज वाली कंपनियों के लिए।
उभरते बाजार जोखिम से बचना: वर्तमान में विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में रुचि नहीं रखते हैं। वैश्विक अनिश्चितता के समय में, निवेशक भारत जैसे उभरते बाजारों में अपना निवेश कम कर देते हैं, जिससे एफआईआई की भारी बिकवाली होती है।
2. वैश्विक शेयर बाजार में बिकवाली
वैश्विक बाजार शेयर बाजार को काफी प्रभावित करता है। यदि एसएंडपी 500, डॉव जोन्स और नैस्डैक जैसे प्रमुख वैश्विक सूचकांकों में बिकवाली होती है, तो निफ्टी 50 के भी ऐसा ही होने की संभावना है। वास्तव में कुल मिलाकर वैश्विक बाजार में उथल-पुथल मची हुई है।
भू-राजनीतिक तनाव: रूस-यूक्रेन युद्ध। ट्रम्प समझौता करना चाहते हैं, जिसमें कुछ समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, इसकी पूरी तरह पुष्टि नहीं की जा सकती। अमेरिका-चीन व्यापार तनाव, अनिश्चितता पैदा करता है, जिससे निवेशक सोने और अमेरिकी खजाने जैसी सुरक्षित परिसंपत्तियों की ओर रुख करते हैं।
चीन में मंदी: चीन वैश्विक व्यापार में एक प्रमुख खिलाड़ी है। अभी, चीन का बाजार कमजोर है। वहां मंदी भारतीय निर्यात की मांग को प्रभावित कर सकती है, जिससे बड़ी-पूंजी वाली कंपनियों की आय प्रभावित हो सकती है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतियां: फेड ने ब्याज दर में वृद्धि का संकेत दिया, जिसके कारण इसका भारतीय बाजार पर प्रभाव पड़ता है।
3. घरेलू आर्थिक चिंताएं
भारत की आर्थिक सेहत बाजार की चाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मंदी के किसी भी संकेत से निफ्टी 50 में गिरावट आती है।
कमजोर कॉर्पोरेट आय: प्रमुख कंपनियों की तिमाही आय बाजार को चलाती है। यदि रिलायंस, टीसीएस, एचडीएफसी बैंक या इंफोसिस जैसी बड़ी कंपनियां निराशाजनक संख्या की रिपोर्ट करती हैं, तो सूचकांक गिर जाता है। घरेलू अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी कंपनियों का प्रदर्शन अच्छा नहीं है, जिसके कारण निवेशक संतुष्ट नहीं हैं।
बढ़ती मुद्रास्फीति: उच्च मुद्रास्फीति इनपुट लागत बढ़ने के कारण कॉर्पोरेट लाभ मार्जिन को कम करती है। इसका असर एफएमसीजी, ऑटो और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों पर पड़ता है।
जीडीपी वृद्धि में मंदी: यदि आर्थिक डेटा जीडीपी वृद्धि में गिरावट का संकेत देते हैं। भारत की जीडीपी वृद्धि में रेडलाइन जो 6.2 है, जिसके द्वारा निवेशक संतुष्ट नहीं होते हैं।
4.क्षेत्र-विशिष्ट कमजोरी
निफ्टी 50 एक भारित सूचकांक है जहाँ कुछ क्षेत्रों का अधिक प्रभाव होता है। यदि प्रमुख क्षेत्र संघर्ष करते हैं, तो सूचकांक में गिरावट आती है।
आईटी क्षेत्र का प्रदर्शन: भारतीय आईटी क्षेत्र अमेरिका और यूरोपीय ग्राहकों पर बहुत अधिक निर्भर करता है। यदि वैश्विक मंदी की आशंका बढ़ती है, तो आईटी कंपनियों को कम सौदे देखने को मिलते हैं, जिससे इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो और एचसीएल टेक के शेयर मूल्य में गिरावट आती है।
बैंकिंग क्षेत्र का दबाव: बढ़ती ब्याज दरें बैंक ऋण वृद्धि को प्रभावित कर सकती हैं, जबकि उच्च एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ) निवेशकों की चिंताएँ पैदा करती हैं। एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और एसबीआई जैसे स्टॉक प्रभावित होते हैं।
ऑटो और एफएमसीजी मांग में मंदी: मुद्रास्फीति उपभोक्ता को कम करती है, मारुति, टाटा मोटर्स, हिंदुस्तान यूनिलीवर और नेस्ले जैसी कंपनियों को नुकसान होता है।
5.RBI की मौद्रिक नीति का प्रभाव
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ब्याज दरों में बदलाव, तरलता उपायों और मुद्रास्फीति के माध्यम से बाजार की गतिविधियों में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
रेपो दर में वृद्धि: मुद्रास्फीति को कम किया जाना चाहिए, उच्च ब्याज दरें उधार लेना महंगा बनाती हैं, जिससे आर्थिक विकास और कॉर्पोरेट विस्तार धीमा हो जाता है।
कड़ी तरलता की स्थिति: यदि RBI मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए सिस्टम से तरलता वापस ले लेता है, तो बाजारों को ऋण संकट का सामना करना पड़ता है, जिससे निवेश और व्यावसायिक गतिविधि कम हो जाती है। मुद्रास्फीति को कम किया जाना चाहिए।
मुद्रास्फीति पर सतर्क रुख: मुद्रास्फीति को कम किया जाना चाहिए। यदि RBI मुद्रास्फीति पर सख्त रुख बनाए रखता है, तो इसका बैंकिंग, NBFC और रियल एस्टेट जैसे दर-संवेदनशील क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ता है।
6.राजनीतिक और नीतिगत अनिश्चितता
बाजार अनिश्चितता के प्रति नकारात्मक प्रतिक्रिया करते हैं, और राजनीतिक अस्थिरता निफ्टी 50 की गिरावट का एक प्रमुख कारक हो सकती है।
नीतिगत परिवर्तन: अप्रत्याशित कर नीतियाँ, आयात/निर्यात प्रतिबंध, मुद्रास्फीति को कम किया जाना चाहिए, या नियामक बाधाएँ दूरसंचार, फार्मा और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों को प्रभावित कर सकती हैं। राजकोषीय घाटे की चिंता: यदि सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ता है, तो इससे अधिक उधार लेने की आशंका होती है, जिससे निवेशकों का विश्वास प्रभावित होता है।
7. तकनीकी और शेयर बाजार में सुधार
कई बार, निफ्टी 50 में गिरावट पूरी तरह से तकनीकी कारकों से प्रेरित होती है।
मुनाफावसूली: यदि निफ्टी 50 महीनों से मजबूत अपट्रेंड में है, तो निवेशक और व्यापारी मुनाफावसूली करते हैं, जिससे अल्पकालिक सुधार होता है।
एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक): विदेशी संस्थागत निवेशक लगातार बिकवाली कर रहे हैं, जिससे बाजार पर असर पड़ता है।
प्रमुख समर्थन स्तरों को तोड़ना: जब निफ्टी महत्वपूर्ण समर्थन स्तरों (जैसे, 200-दिवसीय मूविंग एवरेज) को तोड़ता है, तो यह स्वचालित बिक्री और स्टॉप लॉस को ट्रिगर करता है, जिससे गिरावट तेज होती है।
मंदी का बाजार भाव: यदि बाजार भाव नकारात्मक हो जाता है, तो व्यापारी शॉर्ट-सेलिंग शुरू कर देते हैं, जिससे निफ्टी 50 पर और दबाव बढ़ जाता है। बाजार भाव को देखकर निवेशक भ्रमित हो जाते हैं।
अंतिम विचार: शेयर बाजार
निफ्टी 50 में गिरावट आमतौर पर एक कारण से ज़्यादा कई कारकों का संयोजन होती है। वैश्विक संकेतों, एफआईआई आंदोलनों और क्षेत्रीय प्रदर्शनों पर नज़र रखने से बाजार के रुझान का अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है। अगर आपको निवेश करना है तो आपको अपने निवेश के विशेषज्ञों से बात करनी चाहिए।
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